Sunday, May 31, 2009

स्वप्निल यादें - The Journey Of Dreamland

एक यादगार सुबह हमेशा के लिए मेरी मनोस्मृति पर अंकित हो गयीI ये वो दिन था जब मैं पहली बार पटना से बाहर university की तरफ से educational trip के लिए गयी थीI यह किसी हिल स्टेशन की मेरी पहली यात्रा थी, इसलिए यात्रा का हरेक क्षण मेरे लिए रोमांचक थाI हम Patna science college के 24 students अपने दो Professors के साथ घुमने जा रहे थेI हम सभी के अभिभाबक सुबह के 4 :00 बजे आँखों को मिंजते हुए पटना रेलवे स्टेशन तक छोड़ने आये I कुछ ही देर में ट्रेन ने अपनी रफ़्तार पकड़ी और हम निकल पड़े एक सपनो के शहर शिलोंग के लिए I दूसरी सुबह चार बजे जब ऑंखें खुली तो हम Assam पहुच चुके थेI
ब्रह्मपुत्र नदी अपने पुरे उफान पे थी लग रहा था जैसे हमारे ही स्वागत के लिए सदियों से इंतज़ार कर रही होI Assam की राजधानी गुवाहाटी लगा जैसे अपने शहर पटना सा ही है वहाँ हमने माँ कामख्या के दर्शन कियेI घंटियाँ इतनी सुर ताल में बज रही थी मानो एक सुखद संदेशे की आहटे दे रहीं होंI अगले दिन शिलाँग की यात्रा बस से तय करनी थी, मेघालय बोर्डर चेक पोस्ट पास करते ही khasi and Garo hill दिख रहा था, और मेरी कल्पनाओं का कोष खुलने लगा I

बस ऊँचे नीचे रास्तों पर चढ़ने उतरने लगी कभी सांप की काया की तरह सड़क मुड जाती थी, तो कभी अंग्रेजी के अक्षर V और U की तरह अचानक से मोड़ आ जाता थाI उस पल लगा जैसे जिंदगी में भी खूबसूरत मोड़ आया है, इस सुहानी सी वादियों से रूबरू होने का, सच्चे अर्थों में प्रकृति को जानने का उसे घंटों निहारने का .................I
पहाड़ों की गोद में घरोंदों जैसे छोटे-छोटे घरों को देख कर लगता मानो यहाँ अपना भी कोई आशियाना होताI हमारा कारवां यूथ हॉस्टल में रुका और फिर दुसरे दिन एक नई सुबह के साथ हमें नए लोगो से मिलने का ,शिलाँग को करीब से जानने का मौका मिलाI शिलाँग की खूबसूरत सी झील Ward's Lake जहाँ पानी इतना साफ़ था की अन्दर से तैरती मछलियाँ नजर आतीI रंगबिरंगी चिड़ियों का झुण्ड जब एक साथ उड़ता तो मन पुलकित हो जाता I शिलाँग से आठ किलोमीटर दूर Bishop Beadon Fall को देखकर ऐसा लग रहा था मानो पेंसिल के आकार के एक मोटे water pipe से 200 फीट नीचे पानी गिर रहा हैI
"शिलाँग पीक" अपने नाम के अनुरूप ही एहसास करा रहा था, लग रहा था की धरती पर सारी आकाशगंगा यहीं सिमट के आ गयीं होI लोगों से पता चला की हरेक बसंत में यहाँ के निवासी इस पीक पर शिलाँग के देवता की पूजा करते है I
रास्ते में Airforce Museum था जो की बंद था लेकिन हमलोग कहाँ मानने बाले थेI मैं और कुछ दोस्त baricading फलांग के अन्दर पहुँचे I वहाँ पहरेदारी कर रहे ऑफिसर लोगों से बात की तो वो Museum में एंट्री के लिए मान नहीं रहे थेI फिर बिहारी फ़ॉर्मूला try किया ,मैंने यूँ ही बोल दिया की एक रोहित हमारा दोस्त है, आप उसको बुलाइए atleast उससे तो मिल के ही जायेंगेI मुझे यकिन नहीं था की रोहित नाम का भी ऑफिसर होगाI वहाँ पे जो ऑफिसर थे उन्होंने कहा, कौन से रोहित से मिलना हैI उन्होंने दो नाम बताये बिडम्बना ये की जो higher official था मैंने उसी का नाम बताया और कहा की मेरा classmate हैI हमलोग उनलोगों को ऐसे ही बातों में फंसा रहे थे और थोड़ी दूर आगे तक जा के देख रहे थे की क्या है यहाँI तभी आये हमारे रोहित साहब मुझे पता नहीं था की इतनी जल्दी आ जायेगा I मैंने जल्दी से उसका हाथ पकड़ा और ले गयी एक साइड में ,मेरे दोस्त और वो रोहित भी नहीं समझ पाया की मैं करने क्या बाली हूँI मैंने उसे अपना नाम बताया और सारी बातें सच बताई की हमे museum देखना था इसलिए झूठ कहा थाI मैंने उसे sorry भी बोला और कहा की please किसी को ना बोलेI बहुत अच्छा इंसान था वो भी, थोडा सा मनाने के बाद मान गयाI चुकी वो कोई बहुत बड़ा ऑफिसर था वहाँ का तो उसके permission से गेट खुला और हम सभी स्टुडेंट्स Airforce Museum देख पाएI जाते वक़्त उससे मिलने गयी तो मैंने देखा कुछ map ले के और officers के साथ discuss कर रहा था की तभी किसी ने पूछा कौन है ये तो उसने जबाब दिया "she is my classmate, we are freinds actually" I जब उसने कहा Keep Smiling always, God bless u ever my friend तो बिदा लेते वक़्त लगा कोई अपना छुट रहा हैI उसने diary के पन्ने पे जो लिखा "Life is to live & enjoy. No matter what circumstances you are facing, so live it & enjoy its every moment " मन पे मानो अंकित हो गयाI
हमारा काफिला आगे बढ़ा और Elephanta fall की तरफ रबाना हुआ, पत्थरों से टकराती हुई इसकी सफ़ेद जलधारा गुच्छों का रूप धारण करती एक अलग ही मनमोहक छठा बिखेर रही थीI रात को हमलोग यूथ हॉस्टल पहुचे भूख तो लगी ही थी लेकिन जैसे ही देखा की cantene के आगे तीन चार मुर्गे छील के अलग अलग रंगों से रंगे टंगे हुए हैं, यक उलटी आ गयीI रात को ही शाकाहारी resturant ढूँढना शुरु हुआ पर इतनी जल्दी मिलने कहाँ बाला थाI ढूँढते - ढूँढते बहुत दूर निकल आये तभी एक resturant दिखा जो की शाकाहारी खाना order देने पे बनाता थाI वहाँ का जो मालिक था उसने रात को ही खाना बनबाना शुरु किया तब जा के कहीं पेट पूजा हो सकीI फिर रोज़ सुबह शाम हमलोग लाइन बनाकर खाना खाने जाया करते थे जैसे बचपन में रेलगाड़ी खेला करते थे ना बिलकुल वैसे हीI दूसरी सुबह चेरापूँजी के लिए निकलना था, रास्ते में हमने Dympep view point ,Nohkalikal Fall, Mawsmal cave देखा बड़ा ही सुकून आ रहा था, लगा माँ पापा भी साथ होतेI चेरापूँजी के रामकृष्ण मिशन आश्रम में जाकर लगा की रबिन्द्रनाथ टैगोर और बापू जीबित हो उठे हों कोई संगीत ना होते हुए भी मानो चरखो से आवाज़ आती हो,
" वैष्ण्ब जन ते तेने कहिये जे पीड़ परायी जाने रे" I
Khoh Ramhah एक ऐसी जगह थी जिसकी ऊंचाई से हिमालय की श्रीन्ख्लायें और बंगलादेश के मैदानी इलाके दिखते थे , लोगों ने
सरहदें तो बांटी पर प्रकृति ने अपनी अनोखी छठा दोनों देशो की धरती पर बनाये रखी हैI आगे Thankharang Park और Seven Sister Fall थाI सातों फाल सात सुरों को इंगित कर रहीं थी और सबका मिलन एक संगीत बना रहा थाI
यात्रा अपने अंतिम पडाब पर थी, बापसी बहुत ही निर्मम लग रही थी और मन में एक डर था की कल उन्ही उजड़ी हुई बस्तियों में बापस जाना हैI यूथ हॉस्टल छोड़ते वक़्त लगा इन्ही बिरानो में असली जिंदगानी हैI अपनी इन मधुर स्मृतियों को संजोये अपने सपनो की दुनिया से मैं बापस आ गयी, फिर उसी रटे-रटाये रंगमंच पर जहाँ कुछ अपने - कुछ पराये मेरा बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थेI

Saturday, April 4, 2009

Pane Arabiyata- A disastrous Cooking Experiment

मेरे घर के ठीक सामने बाले घर में पूजा रहती है , बहुत ही शुशील शभ्य और गुणवती लड़की है ऐसा मेरी माता जी मुझे रोज़ सुनाती हैंI ताने देने के अंदाज़ में कहती हैं" देखो तो बित्ते भर की लड़की है तुमसे छोटी है फिर भी सब काम आते है खाना भी बना लेती है , मेरा तो भाग्य ही ख़राब है"I तीन दिन बाद समझ आया की आखिर वो पूजा सारे काम कर लेती है तो माँ का भाग्य कैसे ख़राब है, वो ऐसे की उनकी नजर में मैं सिर्फ आवारागर्दी करती हूँ I यूँ तो रोज़ ही डाट खाती हूँ पर ये ताना कुछ जयादा ही लग गयाI मुझे भी खाना बनाने का खुमार चढ़ा , सोंचा कुछ different बनाउंगी, simple दाल चाबल सब्जी तो कोई भी बना लेता हैI उसकी थोड़े ही न कोई importance होती हैI आधा दिन यही सोंचते और ढूँढते निकल गया की आखिर बनाऊ तो बनाऊ क्या ? फिर तरकीब सूझी की अख़बार में तो हमेशा काफी खाना बनाने की बिधि निकलती रहती है, फिर क्या था सारे पुराने अख़बार निकाले और ढूँढने लगी कौन सी recipe सब से different हैI सब वही घिसे-पिटे नाम आलू टिक्का,पालक पनीर, शाही कोरमा,ब्रेड ढोकला,काजू बर्फी इत्यादिI कुछ अच्छा नहीं मिला तो पडोसी के यहाँ से दूसरा पुराना अख़बार भी ले आई, तभी मिली pane arabiyata बनाने की recipe I नाम पढ़ के ही मैं गद - गद हो गयी, क्या royal type recipe मिली हैI सोंचा रात को जब सब सो जायेंगे तो तब बनाउंगी और सुबह surprise दूंगी I
अपनी उस महीने की pocket money मैंने सारी की सारी ख़तम कर दी royal recipe के royal ingradients लाने मेंI फिर भी पैसे कम पड़ गए तो मैंने अपने छोटे भाई को अपनी तम्मना बताईI उसने भी finance किया और कहा किसी को मत बताना सुबह surprise देंगेI अब एक से भले दो हो गएI सारे ingredients ला के रख दिए हमने, फिर रात होने का इंतज़ार करने लगेI फिर 10 :30 बजे रात में सारी चीजें अपने ही रूम में लाकर अलग- अलग करने लगीI वही अख़बार निकाल लिया, लिखा था "4 मझोले आकर के प्याज काटें"I आधा ही प्याज कटा था की आँखों से गंगा जमुना बहने लगीI मिक्की मेरा छोटा भाई बगल में देख रहा था तो उसने मेरे हाथ से प्याज छीना और खुद ही काटने लगाI दूसरा प्याज भी हमलोगों ने काटना शुरु नहीं किया था की मिक्की भी प्याज के झांश से रोने लगाI बड़ी मासूमियत से कहता है " दीदी जो कट गया है उसी में काम चला लो न, मुझे लग रहा है बिना प्याज के भी बहुत अच्छा बनेगा "I मैंने कहा ख़राब हो जायेगा रे अच्छा बनाना है कुछ different, दोनों मिल के रोते-रोते प्याज काटने लगे कभी वो कटता तो कभी मैंI फिर बारी आई हरी मिर्ची काटने की वो तो बड़ी आसानी से कट गयी लेकिन उसके तीखेपन का अंदाज़ तब लगा जब गलती से मैंने अपनी ऑंखें छू लीI सोने पे सुहागा हो गया जब उन्ही हाथों से आँखों पे पानी डालने लगी, अब दोनों ऑंखें जल रही थीI फिर भी pane arabiyata बनाने का खुमार कम नहीं हुआI हमदोनो उसे ऐसे बनाने पे पड़े जैसे कोई जंग लड़ रहे होंI लिखा था पास्ता उबाले, पहली बार उबाल रही थी न तो लेई जैसा हो गया, उसे हटा कर दूसरा packet फिर से उबालाI रात के 12 :30 बज रहे थे और मैं जो dry fruits लाई थी वो पता नहीं कहाँ सामान में गुम हुआ की मिल ही नहीं रहा थाI फिर किचेन में रखा dry fruits डब्बा ही ढूँढने लगी, आधा घंटा वो ढूँढने में लगा पर मिल गयाI फिर बारी आई पनीर फ्राई करने कीI कभी सपने में भी नहीं सोंचा था की पनीर कढ़ाई में डांस भी करेगा, की अचानक से एक पनीर ने rock n roll किया और सीधे मेरे हाथ पे आ गया डांस करनेI कुछ कढ़ाई बाले तेल भी हाथ पे पड़ गएI जल्दी से हाथ पानी में डाला, मिक्की घर में अब burnol ढूँढने लगा मेरी आँखों से आँसू निकल रहे थे पर मिक्की को सख्त मना किया की अभी किसी को नहीं जगायेI फिर भाई ने बड़े प्यार से burnol लगाया और सलाह दी की अभी छोड़ दो कल बना लेना दीदीI मैंने कहा, गधे last moment में मैदान छोड़ के भागने की बात करता है हार के बाद ही तो जीत होती हैI तुमने burnol लगा दिया न पगले मुझे सच में बिलकुल नहीं जल रहा हैI ये pane arabiyata बनाना कोई war लड़ने से कम नहीं था मेरे लिएI धीरे-धीरे सारे ingradient जिस मात्रा में जिस आकार का जैसे अख़बार में दिया था वैसे ही डालने लगी और पकाती रहीI
हमदोनो की मेहनत रंग ला रही थी शायद, बहुत अच्छी खुशबू आ रही थीI रात के 2 बज चुके थे, हमदोनो को काफी नींद भी आ रही थीI लास्ट में अख़बार में लिखा था "पनीर डालने के बाद आधे घंटे तक धीमी आंच पर पकाएं"I भाई ने कहा दीदी मैं थोडा सा चख के देख लूँ I मैंने मना किया, पागल हो क्या तुम जा के अब सो जाओ मैं भी आधे घंटे के बाद सो जाउंगीI मेरा भाई पूछने लगा तो kitchen कब साफ करोगी, माँ डाटेगी नहीं? बड़ी ख़ुशी में मैंने बोला डाटेगी क्यूँ इतना अच्छा खाना भी तो बनाया न मैंने, कुछ नहीं बोलेगी तू जा के सो जाI मिक्की सोने चला गया और मै kitchen में ही कुर्सी पर बैठ के आधे घंटे पुरे होने का इंतज़ार करने लगीI कब आँख लग गयी मेरी कुछ पता ही नहीं चला और ऑंखें खुली कुछ जलने की बू से,गैस पे चढ़ी कढ़ाई देखी मैंने तो दिल जल गया सारी की सारी pane arabiyata सुख कर कढ़ाई में राख हो गयी थीI
दुनिया उजड़ चुकी थी और कढ़ाई धोने kitchen साफ करने की हिम्मत नहीं बची थी मुझमेI धीरे से मिक्की को जा के जगाया मैंने, उठते के साथ उसने पूछा बन गया मैं कुछ नहीं बोल सकी और उसे kitchen में कढ़ाई दिखा दीI हमदोनो एक दुसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे गा रहे हों " ये क्या हुआ कैसे हुआ कब हुआ ओ छोड़ो ये न सोंचो " पर सोंचना तो पड़ता ही है kitchen जो साफ नहीं थाI कढ़ाई का जो हाल मैंने किया था सुबह डाट नहीं लात खाने की नौबत थीI गैस जो रात भर जले वो अलग, हाथ जो जला था वो तो याद ही नहीं थाI छुरी से खखोर-खखोर के हमने कढ़ाई साफ की, उस दिन जाना की बर्तन धोने में कितनी मेहनत लगती है और हमलोग बेबजह ही गन्दा करते हैI दुसरे दिन कॉलेज में सिर्फ जम्हाइया ही लेती रही अंततः girls common room में जा के सो गयीI तभी मेरी एक दोस्त आई और हाथ पकड़ के क्लास ले जाने लगी, उसने वहीं पकड़ा जहाँ रात को जला थाI रात की जो चीख दबी थी वो निकली एकदम सेI वो डर गयी पूछा क्या हुआ मैं बस इतना ही बोल सकी "pane arabiyata" I मेरी दोस्त मुझे क्लास रूम की तरफ ले जाती हुई pane arabiyata समझने की कोशिश कर रही थीI मुझे हँसी आ रही थी क्यूँ की हाथ जो जला था वहाँ गोल चाँद के आकार का जला थाI इस disasterous cooking experiment ने कुछ अच्छे पल दिए और ये समझ दी की किसी से इर्ष्या करना मतलब अपना ही बुरा करना होता हैI माँ की अभी भी वही आदत है कल ही कह रही थी "देखो तो सोनिया के जॉब हो गया कितनी अच्छी लड़की है .........................." माँ बोले जा रही थी पर उस great accident के बाद कुछ भी किसी के बारे में बोलती है तो मुझे सुनाई नहीं देता I कोई प्रधान मंत्री ही क्यूँ न हो जाये उसके लिए मैं अपना हाथ थोड़े ही जला लुंगी I

Tuesday, November 11, 2008

पहली यात्रा सिनेमाहाल की

एक दिन की बात है, मेरे सारे दोस्तों ने फिल्म देखने की योजना बनाई I मैंने कभी कोई फिल्म हॉल में नहीं देखा था सो काफी उत्साहित थी I तय हुआ की क्लास बंक करके नहीं छुट्टी के दिन जायेंगे I मेरे पापा हजारीबाग में अपने official टूर पे गए हुए थे तो मैंने फ़ोन पर ही पूछा "पापा मुझे फिल्म देखने जाना है सारे दोस्त जा रहे है मैं भी जाना चाहती हूँ क्यूँ की मैंने कभी सिनेमाहाल नहीं देखा, please पापा"I पापा ने परमिशन दे दिया सहसा मुझे यकिन ही नहीं हो रहा था तो मैंने आश्चर्य से पूछा" सबके parents तो मना करते है आप परमिशन दे रहे हैं ??? ", इस पर पापा ने जबाब दिया की "मैंने अपना घर, घर ही रखा है पिंजरा नहीं बनाया बेटे, कौन सी फिल्म जानी है मैं भी चल सकता हूँ क्या" I खैर पापा तो नहीं गए उन्हें कभी ऑफिस से छुट्टी ही कहाँ मिलती है! १२ बजे का शो देखने के लिए ९:३० से ही सिनेमा हॉल पहुचे हमलोग, अढाई घंटा टिकेट खिड़की के आसपास खड़े होकर हम सभी के पैरों का कचड़ा हो गया था I मैं और मेरी दोस्त टिकेट खिड़की पे सबसे आगे लगे हुए थे, तीन क्लास की टिकेट थी और ये नहीं समझ आ रहा था की ये SC BC और DC क्या है? मैंने मेरी दोस्त से पूछा तो उसने बताया SC का मतलब स्पेशल क्लासi बता के और भी दुबिधा कर दी उसने तो समझ नहीं आ रहा था की इस स्पेशल क्लास का ही चार्ज इतना कम क्यूँ है I
खैर , टिकेट खिड़की पर पहुंची तो लगा जैसे गुरु जी नजर आ रहे है और रोम रोम सिहर गया I घबराहट में टिकेट बाले से टिकेट की जगह कैसेट मांगने लगी I टिकेट बाले ने अजीब से देखा और कहता है " टिकेट चाहिए या कैसेट चाहिए ", टिकेट मिला तो हम सभी गेट खुलने का इंतज़ार करने लगे I पहली बार जाना की तीन चीजों की दीवानी है ये दुनिया पहला क्रिकेट , दूसरा सिनेमा और तीसरी किताबें I
जब पहली बार कोई बात होती है या कुछ नया करते हैं तो मन में एक उमंग होती है , अन्दर से सिनेमाहाल देखा तो काफी अच्छा लगा सभी लोग अपनी निर्धारित सीट पर बैठने लगेI बिडम्बना देखिये मेरी कुर्सी ही ख़राब मिलनी थी, जब भी उठती तो बैठने बाली सीट नीचे चली जातीI यार कोई तीन घंटे एक ही जगह पर कैसे बैठ सकता है वो भी एक ही पोज़ में, मेरे से तो नहीं हो रहा था I फिल्म थोड़े से advertisement के बाद शुरु हुई I हीरो के परदे पर आते ही तालिओं और सिटिओं की बौछार शुरु हो गयी , मैंने सोंचा शायद ये परंपरा होगी और मैं भी सिटी बजाने की कोशिश करने लगी I पहली बार था न बजा ही नहीं फिर हार कर ताली बजाना ही श्रेष्ठ लगा I जैसे जैसे फिल्म आगे बढती या कोई तरीका अर्धनग्न अवस्था में कमर मटकती तो अनवरत सीटीओ की बौछार शुरु हो जाती I मन उचटने लगा एकाएक, लगा की इतने उमंग लिए मैं ये देखने आई हूँ I
बड़ा पर्दा , सभी कुछ बड़ा नजर आ रहा था जो दृश्य हम टेलीवीजन पे गौर से नहीं देखते थे और चैनल बदल देते थे वो भी बड़ी बेशर्मी से देखने पड़ रहे थे I यहाँ पे कोई फॉरवर्ड आप्शन ही नहीं था यार! हद सिरदर्दी थी 35 रुपये की मोल जो खरीदी थी मैंने! खैर जैस तैसे मेरे तीन घटे कटे, लगा जैसे जन्मों के पिंजरे से आज़ाद हुई हूँ I सिनेमाहाल से निकलते वक़्त एक ही ख्याल आया " क्या यही हमारी संस्कृति है ? मन ने जैसे कहा , बिलकुल भी नहीं , फिर लगा की globalization का दौर है बोल्ड होना जरूरी है "I
थोडा सोंचने बाली बात है क्या बोल्डनेस बिपाशा मल्लिका या ऐश्वर्या की तरह होनी चाहिए ? आज जरूरत है हमारी प्रथमिकताये बदलने का , हम इस तरह अपने कर्तब्यों से नहीं भाग सकते I
बोल्डनेस बिपाशा मल्लिका या ऐश्वर्या की तरह नहीं ," मदर टेरेशा या कल्पना चावला की तरह होनी चाहिए "I

Thursday, November 6, 2008

Initiation

कहते हैं कोई भी काम शुरु करने से पहले लोग बहुत सोंचते है,उसका निष्कर्ष निकलते हैं की इसका परिणाम क्या होगा पर chand4ever एक ऐसी लड़की की आपबीती है जो कभी परिणाम सोच के कोई काम करती ही नहीं,उसकी लाइफ का बस एक ही funda है”कर्मण्ये बधिकरास्ते माँ फलेसु कदन्चनम” , मतलब की कौन जनता है की मरने के बाद लोगों का पुनर्जन्म होता भी है या नहींI जिंदगी सिर्फ़ एक बार मिली है दोस्त इसलिए जो अच्छा लगे बस वही करोI
बहुत सारे लोग बहुत सी कहानियाँ सुनते और सुनाते हैI chand4ever ने भी अपनी नानी माँ से बहुत सी कहानियाँ सुनी हैI कहानियों में चाँद है,चाँद पे रहने बाले चांदनगर का राजकुमार है और सभी इच्छाओं को पुरी करने बाली परियां है बहुत सारीI chand4ever ये सोंचती है की अगर चाँद उसे मिल जाए तो ये सारी चीजे उसकी ,चांदनगर,चांदनगर का राजकुमार,और ढ़ेर सारी इच्छाओं को पुरी करने बाली परियां भीI नानी माँ तो नहीं हैं पर वो चाँद जो कभी उन्होंने दिखाया अ़ब भी वैसा ही है जैसा किसी 5 साल के बच्चों की दुनिया में होता हैI
सब जानते हैं और वो भी जानती है की चाँद एक उपग्रह है और वहाँ कोई इस तरह की चीजें नहीं हुआ करती पर मन
कहाँ मानता हैI वो तलाशती है इसी दुनिया में अपना चाँद और ये दुनिया ही है उसका चांदनगर,और जो भी इस दुनिया में उसकी इच्छाओं पुरी करते है वो सब है उसके Angels I
Chand4ever है एक ऐसी सपनो की दुनिया जिसका हकीकत बाली दुनिया से सामना तो होता है पर अपने तरीके से वो इस दुनिया को ले जाती है अपने chand4ever की दुनिया मेंI
कहते हैं गलतिया इंसान से ही होती है, chand4ever भी एक ऐसी लड़की है जो गलतियां जान बुझ कर नहीं करती बस हो जाती हैI दोस्तों, अपने मन कि करना कोई क्रांति लाना नहीं है, कोई इनकलाब करना नहीं हैI ये तो बस अपने आप से प्यार करने जैसा हैI Discipline और Rule में फर्क होता है दोस्त, अनुशाषित होना जरूरी है पर गुलाम होना कहाँ की समझदारी हैI ये ब्लॉग किसी लेखक ने नहीं लिखा सो पढने से पहले अपना दिमाग कहीं किसी टेबल के नीचे छोड़ दे, आगे ईश्वर कि मर्जीI

Friday, October 31, 2008

Chand4ever


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In this world, Man is a wanting animal & rarely reaches a state of complete satisfaction except for a short time. This time the moment is amazingly created by god .As one desire is satisfied, another one props upto take its place.
When this is satisfied, another one to the forground. It is a charecteristic of the human being throughout his whole life that he is practically always desiring something.