Saturday, April 4, 2009

Pane Arabiyata- A disastrous Cooking Experiment

मेरे घर के ठीक सामने बाले घर में पूजा रहती है , बहुत ही शुशील शभ्य और गुणवती लड़की है ऐसा मेरी माता जी मुझे रोज़ सुनाती हैंI ताने देने के अंदाज़ में कहती हैं" देखो तो बित्ते भर की लड़की है तुमसे छोटी है फिर भी सब काम आते है खाना भी बना लेती है , मेरा तो भाग्य ही ख़राब है"I तीन दिन बाद समझ आया की आखिर वो पूजा सारे काम कर लेती है तो माँ का भाग्य कैसे ख़राब है, वो ऐसे की उनकी नजर में मैं सिर्फ आवारागर्दी करती हूँ I यूँ तो रोज़ ही डाट खाती हूँ पर ये ताना कुछ जयादा ही लग गयाI मुझे भी खाना बनाने का खुमार चढ़ा , सोंचा कुछ different बनाउंगी, simple दाल चाबल सब्जी तो कोई भी बना लेता हैI उसकी थोड़े ही न कोई importance होती हैI आधा दिन यही सोंचते और ढूँढते निकल गया की आखिर बनाऊ तो बनाऊ क्या ? फिर तरकीब सूझी की अख़बार में तो हमेशा काफी खाना बनाने की बिधि निकलती रहती है, फिर क्या था सारे पुराने अख़बार निकाले और ढूँढने लगी कौन सी recipe सब से different हैI सब वही घिसे-पिटे नाम आलू टिक्का,पालक पनीर, शाही कोरमा,ब्रेड ढोकला,काजू बर्फी इत्यादिI कुछ अच्छा नहीं मिला तो पडोसी के यहाँ से दूसरा पुराना अख़बार भी ले आई, तभी मिली pane arabiyata बनाने की recipe I नाम पढ़ के ही मैं गद - गद हो गयी, क्या royal type recipe मिली हैI सोंचा रात को जब सब सो जायेंगे तो तब बनाउंगी और सुबह surprise दूंगी I
अपनी उस महीने की pocket money मैंने सारी की सारी ख़तम कर दी royal recipe के royal ingradients लाने मेंI फिर भी पैसे कम पड़ गए तो मैंने अपने छोटे भाई को अपनी तम्मना बताईI उसने भी finance किया और कहा किसी को मत बताना सुबह surprise देंगेI अब एक से भले दो हो गएI सारे ingredients ला के रख दिए हमने, फिर रात होने का इंतज़ार करने लगेI फिर 10 :30 बजे रात में सारी चीजें अपने ही रूम में लाकर अलग- अलग करने लगीI वही अख़बार निकाल लिया, लिखा था "4 मझोले आकर के प्याज काटें"I आधा ही प्याज कटा था की आँखों से गंगा जमुना बहने लगीI मिक्की मेरा छोटा भाई बगल में देख रहा था तो उसने मेरे हाथ से प्याज छीना और खुद ही काटने लगाI दूसरा प्याज भी हमलोगों ने काटना शुरु नहीं किया था की मिक्की भी प्याज के झांश से रोने लगाI बड़ी मासूमियत से कहता है " दीदी जो कट गया है उसी में काम चला लो न, मुझे लग रहा है बिना प्याज के भी बहुत अच्छा बनेगा "I मैंने कहा ख़राब हो जायेगा रे अच्छा बनाना है कुछ different, दोनों मिल के रोते-रोते प्याज काटने लगे कभी वो कटता तो कभी मैंI फिर बारी आई हरी मिर्ची काटने की वो तो बड़ी आसानी से कट गयी लेकिन उसके तीखेपन का अंदाज़ तब लगा जब गलती से मैंने अपनी ऑंखें छू लीI सोने पे सुहागा हो गया जब उन्ही हाथों से आँखों पे पानी डालने लगी, अब दोनों ऑंखें जल रही थीI फिर भी pane arabiyata बनाने का खुमार कम नहीं हुआI हमदोनो उसे ऐसे बनाने पे पड़े जैसे कोई जंग लड़ रहे होंI लिखा था पास्ता उबाले, पहली बार उबाल रही थी न तो लेई जैसा हो गया, उसे हटा कर दूसरा packet फिर से उबालाI रात के 12 :30 बज रहे थे और मैं जो dry fruits लाई थी वो पता नहीं कहाँ सामान में गुम हुआ की मिल ही नहीं रहा थाI फिर किचेन में रखा dry fruits डब्बा ही ढूँढने लगी, आधा घंटा वो ढूँढने में लगा पर मिल गयाI फिर बारी आई पनीर फ्राई करने कीI कभी सपने में भी नहीं सोंचा था की पनीर कढ़ाई में डांस भी करेगा, की अचानक से एक पनीर ने rock n roll किया और सीधे मेरे हाथ पे आ गया डांस करनेI कुछ कढ़ाई बाले तेल भी हाथ पे पड़ गएI जल्दी से हाथ पानी में डाला, मिक्की घर में अब burnol ढूँढने लगा मेरी आँखों से आँसू निकल रहे थे पर मिक्की को सख्त मना किया की अभी किसी को नहीं जगायेI फिर भाई ने बड़े प्यार से burnol लगाया और सलाह दी की अभी छोड़ दो कल बना लेना दीदीI मैंने कहा, गधे last moment में मैदान छोड़ के भागने की बात करता है हार के बाद ही तो जीत होती हैI तुमने burnol लगा दिया न पगले मुझे सच में बिलकुल नहीं जल रहा हैI ये pane arabiyata बनाना कोई war लड़ने से कम नहीं था मेरे लिएI धीरे-धीरे सारे ingradient जिस मात्रा में जिस आकार का जैसे अख़बार में दिया था वैसे ही डालने लगी और पकाती रहीI
हमदोनो की मेहनत रंग ला रही थी शायद, बहुत अच्छी खुशबू आ रही थीI रात के 2 बज चुके थे, हमदोनो को काफी नींद भी आ रही थीI लास्ट में अख़बार में लिखा था "पनीर डालने के बाद आधे घंटे तक धीमी आंच पर पकाएं"I भाई ने कहा दीदी मैं थोडा सा चख के देख लूँ I मैंने मना किया, पागल हो क्या तुम जा के अब सो जाओ मैं भी आधे घंटे के बाद सो जाउंगीI मेरा भाई पूछने लगा तो kitchen कब साफ करोगी, माँ डाटेगी नहीं? बड़ी ख़ुशी में मैंने बोला डाटेगी क्यूँ इतना अच्छा खाना भी तो बनाया न मैंने, कुछ नहीं बोलेगी तू जा के सो जाI मिक्की सोने चला गया और मै kitchen में ही कुर्सी पर बैठ के आधे घंटे पुरे होने का इंतज़ार करने लगीI कब आँख लग गयी मेरी कुछ पता ही नहीं चला और ऑंखें खुली कुछ जलने की बू से,गैस पे चढ़ी कढ़ाई देखी मैंने तो दिल जल गया सारी की सारी pane arabiyata सुख कर कढ़ाई में राख हो गयी थीI
दुनिया उजड़ चुकी थी और कढ़ाई धोने kitchen साफ करने की हिम्मत नहीं बची थी मुझमेI धीरे से मिक्की को जा के जगाया मैंने, उठते के साथ उसने पूछा बन गया मैं कुछ नहीं बोल सकी और उसे kitchen में कढ़ाई दिखा दीI हमदोनो एक दुसरे को ऐसे देख रहे थे जैसे गा रहे हों " ये क्या हुआ कैसे हुआ कब हुआ ओ छोड़ो ये न सोंचो " पर सोंचना तो पड़ता ही है kitchen जो साफ नहीं थाI कढ़ाई का जो हाल मैंने किया था सुबह डाट नहीं लात खाने की नौबत थीI गैस जो रात भर जले वो अलग, हाथ जो जला था वो तो याद ही नहीं थाI छुरी से खखोर-खखोर के हमने कढ़ाई साफ की, उस दिन जाना की बर्तन धोने में कितनी मेहनत लगती है और हमलोग बेबजह ही गन्दा करते हैI दुसरे दिन कॉलेज में सिर्फ जम्हाइया ही लेती रही अंततः girls common room में जा के सो गयीI तभी मेरी एक दोस्त आई और हाथ पकड़ के क्लास ले जाने लगी, उसने वहीं पकड़ा जहाँ रात को जला थाI रात की जो चीख दबी थी वो निकली एकदम सेI वो डर गयी पूछा क्या हुआ मैं बस इतना ही बोल सकी "pane arabiyata" I मेरी दोस्त मुझे क्लास रूम की तरफ ले जाती हुई pane arabiyata समझने की कोशिश कर रही थीI मुझे हँसी आ रही थी क्यूँ की हाथ जो जला था वहाँ गोल चाँद के आकार का जला थाI इस disasterous cooking experiment ने कुछ अच्छे पल दिए और ये समझ दी की किसी से इर्ष्या करना मतलब अपना ही बुरा करना होता हैI माँ की अभी भी वही आदत है कल ही कह रही थी "देखो तो सोनिया के जॉब हो गया कितनी अच्छी लड़की है .........................." माँ बोले जा रही थी पर उस great accident के बाद कुछ भी किसी के बारे में बोलती है तो मुझे सुनाई नहीं देता I कोई प्रधान मंत्री ही क्यूँ न हो जाये उसके लिए मैं अपना हाथ थोड़े ही जला लुंगी I

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