Saturday, January 15, 2011

किस रंग से मैं रंग लूँ चुनरिया !!!!!!!!!!!!!!!


जिंदगी सच में एक पहेली की तरह है जितनी आसान तरीके से जीने की कोशिश करो उतनी ही बेईमान होती जाती हैI मन की कोरी चुनरिया लिये इस दूनियाँ के सप्तरंगो को देखती हूँ पर अभी तक समझ नहीं पायी किस रंग से मैं अपनी चुनर रंग लूँ I
अभी कुछ दिन पहले ही स्टेट बैंक ज्वाइन किया है लोगों के बीच इतना स्नेह अभी तक के workplace जहाँ भी मैंने काम किया है, वहाँ पे कभी देखा नहीं था तो यहाँ मैं बिलकुल स्तब्ध रह गयी I युवाओं के बीच ये बैंक बिलकुल ही orthodox माना जाता रहा है पर सच कुछ और ही मिलाI कम से कम मैंने जो ब्रांच ज्वाइन किया है उसका तो हैI लोग ऐसे बातें करते हैं जैसे कोई अपना ही हो I जहाँ एक तरफ corporate की नई मृदंग पर आज के युवा चमकीली जंजीरों पर नृत्य करते हैं, यहाँ देखती हूँ की इतनी आत्मीयता है अपने काम के प्रति की जो लोग retire होने वाले है उन्हें अभी से ही अपनों की जुदाई का गम हैI कल हमारे बैंक में एक employee का जन्मदिन था I शाम को हमने मिल के उनका जन्मदिन मनाया तो वो रो पड़े, कहा "मेरे बच्चे मेरा जन्मदिन भूल जाते है मेरी श्रीमती जी भी भूल जाती हूँ पर मेरा ये दोस्त स्टेट बैंक कभी नहीं भूलता बिटिया , सोंचता हूँ की दो साल बाद कैसे कटेगी जिंदगी "I कह नहीं सकती उस बिटिया शब्द में कैसी सतरंगी छठा थी, एक दारुण दृश्य था बस जो कभी corporate की अश्लील पार्टियों में नहीं देखी अब तक I
यूँ तो पटना की सड़के कितनी अच्छी है ये सभी पटनावासी जानते ही होंगे पर रास्तों से कुछ अजीब सा लगाव हो गया हैI यादें ऐसी हैं की चलो तो पता ही नहीं चलता की आप कहाँ आ गएI यूँ ही एक दिन देखा की डोम टोली में तमाशबीनो की बड़ी भीड़ हैI पास गयी तो लोगों ने बताया "नीच की बस्ती है रोज़ का बखेड़ा है इनका तो मैडम जी " I क्या देखती हूँ एक आदमी अपनी औरत को बड़ी बेदर्दी से पीट रहा था और लोग शुरु से अभी तक सिर्फ मजे ही ले रहे थेI मुझे समझ नहीं आया की आखिर वो औरत पत्थर है या वो सारे लोग जो ये तमाशा देख रहे हैं की तभी मन में क्या आया मैंने एक पत्थर जोर से उस आदमी पर छुप के दे माराI विडम्बना ऐसी की पत्थर आदमी को नहीं लगकर उस औरत को ही लग गयी I उसके बाद तो जैसे चमत्कार ही हो गया वो आदमी अपनी पत्नी को छोड़ कर भीड़ से लड़ पड़ा और उसके जख्म देखने लगाI तभी भीड़ से आवाज़ आई " नौटंकी करता है साला, सब पाकेटमारी का धंधा है "I सबने अपनी राह ली और मैंने भी, पर इस रंगीन दुनिया के इतने भद्दे रंग समझ से परे रहेI पुरे रास्ते ये सोंचती आई की अगर लोगों को पता है की ऐसी जगहों पर पाकेटमारी होती है तो भीड़ लगाकर बढ़ाबा ही क्यूँ देते हैI क्या दुनिया है पेट के लिये पीटना और पीटाना पड़ता है I
एक बहुत ही खूबसूरत गाने की लाइन सुनी थी " तू भी तो तडपा होगा मन को बनाकर", कभी यूँ ही ख्याल आता है सब मशीन ही क्यूँ ना हो गए इस मन की क्या जरूरत थी भगवान ? मेरे एक परम प्रिय मित्र ने बहुत ही समझाया मुझे की यार लोगों का मत सोंच, थोडा selfish हो जा जिंदगी फिलोसफी से नहीं चलती पर क्या ये सही है की ह़र कदम हम अपना मतलब निकलने के लिये अपनी आत्मा से खेले या फिर जड़ हो जाएँ तो फिर इंसान रह पायेगे क्या ????

3 comments:

babanpandey said...

सबसे पहले नए स्टेट बैंक में आपके योगदान के लिए ..बधाई ...बातों ही बातों में ...आपने अछि बात कह दी //

मदन शर्मा said...

ऐसे उपयोगी लेख के लिए
बहुत सारी शुभ कामनाएं आपको !!

Chand4ever said...

@Baban jee & Madan Jee Thanxs for Appreciation, come back soon with the new post