हरेक रविवार कि तरह फिर चर्च ईशु से बातें करने गयीI सुबह के नौ बज रहे हैंI कोई आया नहीं अभी तक सिर्फ रामप्रबेश जी आये हैं और church survice की तैयारी में व्यस्त हैंI ईशु की मेज के गुलदस्ते सजाने के लिए फूल लेने चर्च के गार्डेन में गयीं हूँ पर कहीं खोई हूँ शायदI मन में अजीब सी व्याकुलता हैI चश्मा लगा रखा है मैंने फिर भी फूल, पत्ते, कांटे, घांस कुछ भी साफ- साफ नहीं दिख रहा हैI निष्प्राण सी बैठी कुछ सोंच रही हूँ इस सोंचने का अंत शुखद है या दुखद पता नहीं मुझे पर सारी बातें याद आ रही है
माँ के साथ ज्वेलर के यहाँ गयी थीI किसी रिश्तेदार को कुछ गिफ्ट देने के लिए खरीदना था की मैंने एक प्यारी सी अंगूठी अपनी ऊँगली में डाल लीI इतनी फिट हो गयी कि निकल ही नहीं रही थी जबरदस्ती मैंने हाथो से निकालाI घर आई तो पता चला माँ ने वो अंगूठी भी खरीद ली हैI मेरे जन्मदिन का उपहार था वोI सारे फसाद की जड़ यही हैI कई बार सोंचा इसे अपनी ऊँगली से निकाल दूँ ,पर एक अनकहा सा रिश्ता जुड़ गया है इससे मेरा ,ऑफिसर जी का और मेरी आवारगी की दुनिया काI
कल की ही बात लगती है जैसे,किसी ने ऑफिस में पूछा "रिंग पहनी है आपने एंगेजमेंट हो गयी है क्या आपकी"I सुबह- सुबह अंकिता का फ़ोन आया था और मैंने यूँ ही बिना कुछ सोंचे पता नहीं क्यूँ ऑफिसर जी का नाम अपने से जोड़ लिये, कितनी गधी थी मैंI प्यार मोहब्बत बाली दुनिया से अपना कोई लेना- देना नहीं थाI कितने ही दोस्तों को बर्बाद होते देखा था मैंनेI उपदेश दिया करती थी सबको बहुत बुरी चीज है, ना रे बाबा मुझे तो कभी नहीं करनाI पर करता कौन है ये तो बस हो जाता हैI
ईशु के लिये फुल चुन रही हूँ और सोंचती जा रही हूँ की कैसी जिंदगी थी बैंक की ये ऑफिसर जी का नाम ही था की उस मरुभूमि में भी ओस की अमृत बूंद लगती थीI रोज़ लोग उसका नाम ले के चिढाया करते थे जिसे मैंने कभी देखा भी नहीं था और मेरा पागलपन ये की मैं झूठ ही चिढ जाया करती थीI कुछ उन लोगो के मुस्कुराते चेहरों को देखने के लिये और कुछ अपनी ख़ुशी के लिएI आप लोग भी सोंच रहे होंगे ये ऑफिसर जी कौन था, कैसे मिला है नाI वो क्या है की एक दिन अपनी दोस्त अंकिता को ऑरकुट पे ढूंढ रही थीI उसकी शादी के बाद उसने एक बार भी कॉल नहीं किया तो उसकी चिंता होने लगीI उसके पुराने नंबर पे ट्राई करती तो ऑफ बताताI उसे ही ऑरकुट पे ढूँढने लगी की शायद ऐसे मुझे मिले, की ऑफिसर जी मिल गएI बातों ही बातों में दोस्त हो गए हम और अपनी आपबीती एकदूसरे को सुनाने लगे, फिर तो ये सिलसिले ही हो चलेI ऑफिस से आने के बाद ऑरकुट खोलना आदत सी हो गयीI चीजें हमेशा एक सी नहीं रहतीं ऑफिसर जी ने एक दिन बताया की वो आ रहा हैI बहुत खुश थी मैं तो, मेरा कोई भी दोस्त आता तो ऐसे ही खुश हुआ करती थीI सोंचती क्या करूँ उसके स्वागत में पर पता चला वो आके भी नहीं आ पायेगा कोई प्लेन से उतर के मिलने दे तब नाI जलबेरा के फूल ख़रीदे थे मैंने, सोंचा मैं नहीं मिल सकी तो क्या ये फूल ही मिल लेंगेI पर कुछ अच्छा जो सोंचो तो ज़माने भर की बंदिशें लग जाती है जैसेI हाय रे एअरपोर्ट की सिक्यूरिटी बाले, सारी खुशियों पे पानी डाल दिया उनलोगों नेI कभी airlines काउंटर पे अरज करती तो कभी लोगों को कहती की ये फूल लेते जाओI किसी ने नहीं सुनी, लोगों को मेरे ये प्यारे फूल बम नजर आते थे और मैं आतंकबादी शायदI " परदेशी बादलों में खो गया और मैं जमीं पे छटपट मचाती रह गयी जैस मन कह रहा हो- फिर से अयिओ बदरा विदेशी पंखों पे तेरे मोती............" फूल बगल बाले मंदिर के हनुमान जी की किस्मत में थाI बहुत बुरा लग रहा था लगा क्यूँ गयी थी मैंI मैं इतनी ediotic हरकते कैसे कर सकती हूँI मेरा सचमुच का एंगेजमेंट थोड़े ही ना हुआ है उससे की आँखों पे जैसे अँधेरा छा गयाI होश तब आया तब ऑटो से गिर गयी और सड़क की गिट्टियाँ हाथ पैर में चुभ गयींI Diaphram enjured हो चूका था माँ नहीं होती तो शायद ही जिंदगी में कभी दोबारा चल पातीI फिर तो किताबों की जगह टेबल पे दवाईयां और injections थेI 10 दिन ऑरकुट बंद, उठने के लिए भी माँ की जरूरत होती तो लिखती कैसेI अचानक बारहवे दिन ऑफिसर जी का फ़ोन आया तो लगा he cares for me yaar और सारे दर्द गायब हो गएI सारे दोस्तों की दुआ थी की मैं जल्द ही ठीक हो गयीI रोज़ अपने आप को समझाती की प्यार- व्यार नहीं है यार हम सिर्फ दोस्त हैंI दूसरों से लड़ना आसान होता है पर अपने आप से लड़ना बहुत मुश्किलI आखिर वो दिन भी आ ही गया जब सबको बताना था की मैं आपलोगों से और अपने आप से सच बोलना चाहती हूँI जान बुझ के ऑफिसर जी की वीडियो बनायीं ताकि माँ देखे और पूछे कुछ, अपनी बातें बताई मैंने माँ कोI माँ ने enquairy शुरु कर दी ,कहाँ रहता है, घर कहाँ है, क्या करता है न जाने कितने सवाल इतना डर तो कभी exam में भी नहीं लगता था जितना आज लग रहा थाI जब मैंने बताया की deffence में है तो भड़क गयीI बोली कोई बच्चों का खेल है पता भी हैं तुम्हे वो लोग कैसे होते हैंI माँ ने उनलोगों की बुराइयाँ जो गिनाना शुरु किया तो मैं कुछ बोल ही नहीं पायी पर मन कहता गयाI माँ से बहस भी नहीं कर सकती तो चुप-चाप सब सुनती जा रही थीI
माँ कहती -कितने निर्दयी होते हैं पता भी है तुम्हे जरा भी दया नहीं होती है,मेरा मन कहता- ऐसा नहीं हैI
माँ कहती -शराबी होतें है सब के सब एक नंबर के , मेरा मन कहता-उन लोगों को ऐसी परिस्थितियाँ झेलनी पड़ती है की पीना पड़ जाता है माँI
माँ कहती - सब के सब non-vegetarian होते है गुड़िया,मेरा मन कहता- तो क्या हुआ पापा भी तो हैं पर कभी उन्होंने आपको इसके लिए कुछ बोला तो नहीं I
माँ कहती - उनलोगों की जान का कोई ठिकाना होता है भला, मेरा मन कहता-जिंदगी का ठेका तो Civilians के पास भी नहीं है कौन जानता है वो कल तक जिन्दा रहेगा भी I
माँ शायद समझ गयी थी की मैं समझने की कोशिश नहीं कर रही हूँI माँ पुरे गुस्से में थीं बोलती हैं, देखा है बबली को कारगील के बाद हस्ती खेलती जान पागल सी हो गयी हैI मेरे पापा कहते हैं आदमी जिसपे ज्यादा गुस्सा करता है उससे उतना ही प्यार भी करता हैIमैं अपने आप को daughter of shame बनते नहीं देख सकती थीI ऑंखें जो डबडबाई सी थी वो छलक पड़ी और मैंने हिम्मत कर के कहा " माँ diffence बाले भी इंसान होते हैं वो बहुत अच्छा लड़का है बस नाक थोड़ी सी मोटी है"I माँ मुस्कुराई थोडा सा और कहा क्यूँ नहीं समझती हो नट- नगारों बाली जिंदगी होती है आज यहाँ तो कल वहाँI तुम रहना हिंदुस्तान में और वो रहेगा जापान मेंI ठीक है मै पापा से बात करुँगी पहले उस लड़के से मेरी बात कराओ, शायद मान गयी थीI
मैंने ऑफिसर जी पहले कभी इस बारे में पुछा नहीं था तो अब बारी उसे बताने की थीI मेरे दोस्त साईं बाबा ने बहुत strength दिया, कहा सच का सामना तो करना ही पड़ेगा आज नहीं तो कलI वैसे भी झाँशी की रानी डरती कैसे पर एक कसमकस अभी भी थी की मैं सच में प्यार करती हूँ या यूँ ही है ये सबI खैर बता दिया उसे भी, एक जो उम्मीद थी ऑफिसर जी ने उसकी भी क्रिकांदिस कर दीI जब उससे बातें कर रही थी तो speaker माँ ने ऑन करबा दियाI माँ भी सुन रही थी जब ऑफिसर जी ने कहा हमारे बीच ऐसा कुछ भी नहीं है और ना ही हो सकता है हम दोस्त हैं और हमेशा दोस्त ही रहेंगेI उसके ये शब्द मेरे लिए बज्रप्रहार से कम ना थेI उस वक़्त लगा जैसे कुछ खाली सा हो गया है, फिर भी उसकी कोई गलती है ही नहीं सारी गलतियाँ तो मैंने की थी सजा भी तो अकेले मुझे ही मिलनी है नाI समझ आ गया था की सचमुच में ही उस अजनबी को प्यार करती हूँ जिसे कभी देखा भी नहीं है मैंनेI
"A beautiful challenge to Newton's theory of gravity: A Heart feels light when someone is in but it feel heavy when someone leave it" कभी उसी ने एक बड़ा अच्छा सा मैसेज किया था, आज उसका मतलब समझ आ रहा थाI
आह ये कांटा भी ना पता नहीं कैसे हाथ में चुभ गया, खून निकल रहा हैI सामने से रिचर्ड अंकल बाइबल का lesson ले कर मेरी तरफ देने आ रहे हैंI पर आज मेरी कुछ भी बोलने कि स्थिति नहीं है, मेरी ऑंखें डबडबाई सी थी तो मैंने उन्हें यूँ ही बोल दिया कि कुछ पड़ गया हैI कुछ लोग जैसे मन पढ़ लेते है, अंकल ने कहा जो भी मुश्किलें है सब खत्म हो जाएँगी भरोशा और हिम्मत कभी मत छोड़ोI चर्च में प्राथना शुरु हो चुकी है पर मन काटों पे ही अटका है मेरा एक दोस्त है मच्छर(बहुत ही पतला दुबला है तो मैंने उसका ये नामांकरण कर दिया है) ने कहा था तुम जो चल रही हो ना ये रास्ता काटों भरा हैI अगर मै तुम्हे और ऑफिसर जी को मार्क्स दूँ तो उसे 90 % और तुम्हे 35 % दूंगा , सड़क कि गिट्टियाँ भी इतनी नहीं चुभी होंगी जितना कि ये बातें कटार सी लगतीI मैंने कभी इस तरह नहीं सोंचा था कि दुनिया लोगों को तौलती है उसके living stander के हिसाब सेI सभी चर्च में प्रार्थना में लगे हैं और मैं ईशु से मन ही मन लड़ रही हूँ कि ऐसी दुनियां में मुझे क्यूँ भेजा, क्यूँ नहीं हैं सब लोग एक समान, क्यूँ है ये difference, क्यूँ फंसा रहे हो मुझे इस दुनियादारी के झमेले मेंI
स्नातक परीक्षाओं में living और nonliving के बारे में difference लिखने आता था कभीI आज difference के एक ओर ऑफिसर जी थे तो दूसरी ओर मैं हूँI मन में आ रहा है कि वो discipline बाला है और मैं अल्हड़- .आवारा, उसकी दो ऑंखें है शायद और मैं अंधी हूँ, उसे चुप रहना पसंद है और मैं पुरे दिन बकबकाती रहती हूँI मच्छर कहता है वो फोडू इंसान है और शायद मैं लोगो का सर फोड़ती हूँ,वो इंग्लिश बोलता है और मैं इंग्लिश कि अर्थी निकलती हूँ वो क्या है कि मुझे ग्रामर नहीं आती नाI सारे सवालों के भँवर में खुद ही डूब उतरा रही हूँI लग रहा है कि कोई साथ नहीं है ईशु भी नहीं कि तभी पादरी जी ने बाइबल का पाठ पढने को dashboard पे बुलाया मुझेI

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